उम्मीद/ सांत्वना


 

सच है,

गाँव में शुकून है ,

शांति है बहुत......


और शहर में भाग दौड़ हैं,

असंतोष हैं, अतृप्ति हैं,

लेकिन एक उम्मीद तो हैं,

की कभी सब ठीक हो जायेगा ।


ऐसी शांति और शुकून 

शक्ति के बिना 

 मेरे लिए दो कोड़ी की है....


क्योंकि ऐसी तृप्ति तो

 उन नपुंसक घरेलू जानवरों में भी होती हैं 

बिल्कुल ही निष्काम की .......

सिर्फ जिए चले जाते हैं,

सच कहूं तो वो सिर्फ जिंदा है।


मैं दर-बदर भटक कर मरना पसंद करुंगा 

लेकिन खुद को दिलासा देकर,

आत्मसात करके नहीं जी सकता 


सांत्वना से ज्यादा महत्वपूर्ण है

 उम्मीद कि कुछ कर ही लुंगा 

चाहें सब लग जाये दाव पर 

मैं अपनी निजता नहीं खोने दुंगा 

_sury

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