अनोखा सफर

 



पहला सफर की सुरुआत होती है' मेरी भोपाल के दौरे से कोई काम के सालसिले मे पहली बार घर से दूर बहुत दूर सफर की सुरूआत होती हैं गाँव से शहर की और हरी भरी लहराती हूई फसलो से गुजरती हुई, फल दार हवादार पेड़ों को पीछे छोड़  काँन्क्रेट से बनी गगनचुंबी इमारतों को निहारते हुँए अब धीरे धीरे शहर की गंदगी जो श्वास न लेने को मजबूर करने लगी हैं अब और आगे बढ़ने पर  छोटे-बड़े उससे बड़े शहरों को पार करते हुए प्रत्येक शहरो की शोर-गुल जो कानो को अप्रीय लगती रही जब कुछ पाने का जज्बा अंदर होता हैं न तो इंसान कुछ भी कर गुजरता हैं ।लो मैंने भी एक अनजान शहर मे रेल्वे स्टेशन मे अपनी रात व्यतीत कर लिया यूँ कहो काट लिया जैसे-तैसे क्योंकि शौर शराबा के चलते मेरी नीदो की दुनिया की  फिल्म केसे चलती कुछ भी कहो भोपाल काफी रोमांचक शहर है 

भोपाल की इस पहली ओर अनोखी सफर मे मुझे अंदर से झकझोर कर देने लायक घटना सामने आई 

भोपाल आते वक्त जिस ट्रेन से मे आ रहा था,जिस डिब्बे मे बैठा था ठीक मेरे सामने एक छोटी सी फेमली थी माता-पिता एक लड़का बड़ा करीब तीन-चार साल का ओर उसकी दो बहने थी उससे छोटी 

उन बच्चो के प्रति उन अभिभावकों का वात्सल्य प्रेम देखकर मे देखता ही रह गया निशब्द हूँ अवाक्य हूँ हमेशा मे सुनते ही आया हूं मुंह जुबानी कहानी किताबो मे पर मैने आज महसूस किया 

एक किस्सा और है रेल्वे स्टेशन का जहां मैंने अब तक दूसरी बार {निर्गुण ब्रह्म} भगवान से प्रार्थना किया के ये दोनों भाई -बहन ही हो, हो भी सकते है पर उनकी करतूते ही ऐसी थी की मुझे दुआएं भागने ही पड़ी वजह सिर्फ इतना सा था की लड़की लड़का से बहुत ज्यादा खूबसूरत थी. 


एक किस्सा अभी मेरे सामने वाली सीट की है देखकर ऐसा लगता हैं ओर मेरी observation capacity ये कहती है के ये दो प्रेमी है जोडा़ है लड़का बेठा हुआ है ओर लड़की उसके गोदी मे सर रखकर सोई हुई हैं ओर वह लड़का उस लड़की का ख्याल छोटे बच्चे की तरह रख रहा है फिर करीब ५ घंटे की नींद के बाद लड़की के गोद मे लड़का कितने प्यारे लग रहे थे 

बहुत ही खूबसूरत जोडा़ था सच कहुं तो कही न कही उनको देखकर मुझे जलन जरूर हुई है  रात के 1:59 मिनट हो गये हैं ओर 1½‌घंटे का सफर अभी ओर शेष हैं 


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