परम से प्रेम

SR


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 इससे ज्यादा तेरा अपमान क्या ही होगा

मे आऊँ और माँग करू फला -फला की '

मुझे तुमसे प्रेम है मे प्रेम के फूल चढ़ाने आया हूँ

मे तुमसे मिलने तेरे गीत गाने आया हूँ

तुम अपने प्रेमी का उपहार स्वीकार करोगी

ये उधार पेड पर नही मेरे हृदय मे खिला फूल है


सच कहूँ तो ऐसे बहुत कम लोग हुए है और है जिनको प्रेम और भक्ति

आती है भगवान का भी इन्सान अपने स्वार्थ से इस्तमाल करते है

 कितने आश्चर्य की बात है 

प्रभु तू मेरा फला-फला काम कर देना मे तुझे ये वो दुँगा अगर नही

किया तो सोच लेना . क्या यह प्रेम की बाते हो सकती है . सोच कर 

देखो ऐसे ही व्यवहार ये प्रेम के साथ करते है


प्रेम और परमात्मा.भक्त और प्रेमी एक ही सिक्के के दो पहलू है

 सच तो है लेकिन सच मेरे लिए थोड़ा सा अलग है , बाटने की प्रवृत्ति 

मनुष्य की अब तक न गई मेरे लिए सिक्का के दो पहलू नही है सिर्फ 

" सिक्का " है । दुनिया मे धर्म और जाती का जो विवाद चल रहा है

वह ऐसी मानसिकता वालो लोगो की वजद से चल रहा है ' जो मूढ़ है

बिलकुल ही मूढ़ है . परमात्मा एक है . सबका मालिक एक है तो विवाद

 कैसा जरूर ही वे मानसिक रोगी है

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