कलंकनी



 


भाग कर अपने घर से कोई पीछे कलंक छोड़ गई।

एक ने लड़की मेरे गाँव की परियो की पंख ले गई।


क्या चाहिए था तुझे ,मागना तो था

 लड़ लेती घर से,तुझे भागना तो था


क्यों तु बिन बताए घर से अपनी चली गई

न जाने कितनी मासूमो की तूने हंसी ले गई

एक लड़की मेरे गाँव की परियो की पंख ले गई. ....


किसी के पापा नही दिखते अब गाँव में 

किसी की बहन नजर न आती अब गाँव में 

तुम्हारे पापा तो छुप रहे हैं लोगों के तानो से,

पर हमे क्यो छुपाया जा रहा हैं अब गाँव में 


एक बेशर्म मेरे गाँव की परियो की आजादी  ले गई 

उनकी हंसी खुशी जिंदगी को उसने बर्बादी दे गई

एक लड़की मेरे गाँव की परियो की पंख ले गई.....


मे खिलाफ नहीं प्रेम के, मे उसको निभाने के तरीको से हूँ 

जिन्होंने प्रेम मे अपनी कुर्बानी दी है, मे उन सरीफो से हूँ 


पिता को अपनी इज्जत से ज्यादा बच्चों की खुशी प्यारी होती हैं 

बशर्ते बच्चों को भी खुद से ज्यादा पिता की इज्जत प्यारी होती हैं


यहाँ तो प्रेम की परिभाषा ही बदल गई कोई 

प्रेम एक कलंक है क्यो सबको तू बता गई


एक लड़की मेरे गाँव की परियो की पंख ले गई 

भाग कर अपने घर से पीछे कलंक छोड़ गई


#Retikaravi  

-रेति का रवि 

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