तलबगार कोन है ।
काश ये दिल भी किसी और से दिल लगा लेता ।
मे भी अब तक चार-पांच से दिल लगा लेता ।
दिल तो लगाया है पर अब तक हासिल नही है,
अब गैर और को चाहने की दिल इजाजत नही देता।
उसे तो अब तक मे भी हासिल कर लेता ।
प्यार भरी बाते तो अब तक मे भी कर लेता ।
मोहब्बत रूह से हो गई मुझे ,जिस्म से होती
तो इजहार-ऐ-इश्क अब तक मे भी कर लेता ।
प्यार है इसलिए तो इतजार है ।
नही तो मुझ पे भी अब तक,
कुर्बान तो तीन-चार है ।
तेरा तो मुझे एक जनम नही ,
सातो जनम तक इंतजार है ।
नजरो को पसंद आया पता नही वह कोन है ।
हम इजहार कर देते है उसको पता नही हम कोन है ।
ऐसे मे जल्द बाजी बता देती है मुझको ,प्यार है ,
या जिस्म के लिए तलबगार कोन है ।
✍SR

sury.3_
Writer
शायरी करना शौक नहीं मजबूरी है मेरी ।