कैसा ये इश्क़ है
कैसा मोह और कैसी माया है।
दूर है वो सख्श जिसे मैंने चाहा है।
डर रहता है खोने का जिसे मुझे,
मेने उसे अब तलक न पाया हैं।
ये दिवारे ही दूरिया बनाती है रिश्तो में
जिसकी दरवाजे बंद होते रहते है किस्तो मे।
जब बुझने लग जाए आग हवशियों की
खुल जाते हैं दरवाजे तब टूटती है धागे रिश्तो की
कैसा खेल खेल रहे हैं इश्क का कुछ लोग
यह शांत तो करते हैं वासना को अपनी,
और इसे ही इश्क बता रहे हैं कुछ लोग।

sury.3_
Writer
शायरी करना शौक नहीं मजबूरी है मेरी ।