गलत मानसिकता
आदमी बाहर से फूल सजा लेने की चिंता में है। बस लोगों की आंखों में दिखायी पड़ने लगे कि मैं अच्छा आदमी हूं बात समाप्त हो गयी। लेकिन लोगों की आंखों में अच्छा दिखायी पड़ने से मेरे जीवन का सत्य और मेरे जीवन का संगीत प्रगट नहीं होगा और न लोगों की आंखों में अच्छा दिखायी पड़ने से मैं जीवन की मूल धारा से संबंधित हो सकूंगा। और न लोगों की
आंखों में अच्छा दिखायी पड़ने से मेरे जीवन की जड़ों तक मेरी पहुंच हो पायेगी। बल्कि, जितना मैं लोगों की फिक्र करूंगा, उतना ही मैं शाखाओं और पत्तों की फिक्र में पड़ जाऊंगा क्योंकि लोगों तक सिर्फ पत्ते पहुंचते हैं, जड़ें नहीं ।
जड़ें तो मेरे भीतर हैं। वे जो रूट्स हैं, वे मेरे भीतर हैं। उनसे लोगों का कोई भी संबंध नहीं है। वहां मैं अकेला हूं। totally alone वहां कोई कभी नहीं पहुंचता। वहां सिर्फ मैं हूं। वहां मेरे अतिरिक्त कोई भी नहीं है। वहां किसी दूसरे की फिक्र नहीं करनी है।
अगर जीवन को मैं जानना चाहता हूं; और चाहता हूं कि जीवन मेरा बदल जाये, रूपांतरित हो जाये; और अगर मैं चाहता हूं कि जीवन का परिपूर्ण सत्य प्रगट हो जाये; चाहता हूं कि जीवन के मंदिर में प्रवेश हो जाएं; मैं पहुंच सकूं, उस लोक तक जहां सत्य का आवास है तो फिर मुझे लोगों की फिक्र छोड़ देनी पड़ेगी। वह जो crowd है, वह जो भीड़ मुझे घेरे हुए है, उसकी फिक्र मुझे छोड़ देनी पड़गी। क्योंकि जो आदमी भीड़ की बहुत चिंता करता है, वह आदमी कभी जीवन की दिशा में गतिमान नहीं हो पाता। क्योंकि भीड़ की चिंता, बाहर की चिंता है।
इसका यह मतलब नहीं है कि भीड़ से मैं अपने सारे संबंध तोड़ लूं जीवन व्यवस्था से अपने सारे संबंध तोड़ लूं। इसका यह मतलब नहीं है। इसका कुल मतलब यह है कि मेरी आंखें भीड़ पर न रह जायें, मेरी आंखे अपने पर हों। इसका कुल मतलब यह है कि दूसरे की आंख में झांककर मैं यह न देखूं कि मेरी तसवीर क्या है। बल्कि मैं अपने ही भीतर झांककर देखूं कि मेरी तस्वीर क्या है। अगर मेरी सच्ची तस्वीर का मुझे पता लगाता है तो मेरी ही आंखों के भीतर झांकना पड़ेगा।
तो दूसरों की आंखों में मेरा जो अपीयरेंस है-मेरी असली तस्वीर नहीं है वहां । और उसी तस्वीर को देखने मैं खुश हो लूंगा, उसी तस्वीर को देखकर प्रसन्न हो लूंगा। वह तस्वीर गिर जायेगी, तो दुखी हो जाऊंगा। लगा। चार आदमी बुरा कहने लगेंगे, तो दुखी हो जाऊंगा। चार आदमी अच्छा कहने लगेंगे, तो सुखी हो जाऊंगा। बस इतना ही मेरा होना है? तो मैं हवा के झोंकों पर जी रहा हूं। हवा पूरब की और उड़ने लगेगी, तो मुझे पूरब उड़ना पड़ेगा; हवा पश्चिम की ओर उड़ेगी, तो पश्चिम की ओर उड़ना पड़ेगा। लेकिन मैं खुद कुछ भी नहीं हूं। मेरी कोई आर्थेटिक existence नहीं हैं। मेरी कोई अपनी आत्मा नहीं है। मैं हवा का एक झोंका हूं। मैं एक सूखा पत्ता हूं कि हवाएं जहां ले जाये बस, मैं वहीं चला जाऊं कि पानी की लहरें मुझे जिस ओर बहाने लगे, मैं उस ओर बहने लगू दुनिया की आंखें मुझ से जो कहें, वही मेरे लिये सत्य हो जाये।
तो फिर मेरा होना क्या है? फिर मेरी आत्मा क्या है? फिर मेरा अस्तित्व क्या है? फिर मेरा जीवन क्या है? फिर मैं एक झूठ हूं। एक बड़े नाटक का हिस्सा हूं।
जीवन में क्रांति लाना है तो दूसरो कि आंखों में मत देखो कि आप क्या हैं।
वहां जो भी तसवीर बन गयी है, वह आपके वस्त्रों की तसवीर है, वह आपकी दिखावट है, वह आपका नाटक है, वह आपकी acting है वह आप नहीं हैं, क्योंकि आप कभी प्रगट ही न हो सके, जो आप हैं, तो उसकी तसवीर कैसे बनेगी! वहां तो आपने जो दिखाना चाहा है, वह दिख रहा है।
भीड़ से बचना धार्मिक आदमी का पहला कर्तव्य है, लेकिन भीड़ से बचने का मतलब यह नहीं है कि आप जंगल में भाग जायें। भीड़ से बचने का मतलब क्या है?
समाज से मुक्त होना धार्मिक आदमी का पहला लक्षण है, लेकिन समाज से मुक्त होने का क्या मतलब है? समाज से मुक्त होने का मतलब यह नहीं है कि आदमी भाग जाये जंगल में। वह समाज से मुक्त होना नहीं है। वह समाज की ही धारणा है संन्यासी के लिये कि जो आदमी समाज छोड़कर भाग जाता है, वह उसको ही आदर देता है। यह समाज से भागना नहीं है। यह तो समाज की ही धारणा को मानना है। यह तो समाज के ही दर्पण में अपना चेहरा देखना है।
गेरुए वस्र पहन कर खड़े हो जाना संन्यासी हो जाना नहीं है। वह तो समाज की आंखों में, समाज के दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखना है। क्योंकि अगर समाज गेरुए वस्त्र को आदर देना बंद कर दे, तो मैं गेरुआ वस्त्र नहीं पहनूंगा।
अगर समाज आदर देता है एक आदमी को पत्नी और बच्चों को छोड़कर भाग जाने को तो आदमी भाग जाता है। यहां भी वह समाज की आंखों में देख रहा है। नहीं, यह समाज को छोड़ना नहीं है।
समाज को छोड़ने का अर्थ है समाज की आंखों में अपने प्रतिबिंब को देखना बंद कर दें।
अगर जीवन में कोई भी क्रांति चाहिये, तो लोगों की आंखों में देखना बंद कर दें। भीड़ के दर्पण में देखना बंद कर दें।

sury.3_
Writer
शायरी करना शौक नहीं मजबूरी है मेरी ।